mantra pushpanjali mantrapushpanjali om yadnen yadnya om yagyen yagya arth marathi hindi
मंत्र पुष्पांजलि के विश्वप्रार्थना वाले दिव्य मंत्र
पहला मंत्र-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:।।
श्लोकाचा अर्थ – देवांनी यज्ञाच्याद्वारे यज्ञरुप प्रजापतीचे पूजन केले. यज्ञ आणि तत्सम उपासनेचे ते प्रारंभीचे धर्मविधी होते. जिथे पूर्वी देवता निवास (स्वर्गलोकी) करीत असत ते स्थान यज्ञाचरणाने प्राप्त करून साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते झाले.
इस मंत्र का भावार्थ- देवों ने यज्ञ के द्वारा यज्ञरुप प्रजापती का पूजन किया। यज्ञ और तत्सम उपासना के वे प्रारंभिक धर्मविधि थे। जहां पहले देवता निवास करते थे (स्वर्गलोक में) वह स्थान यज्ञाचरण द्वारा प्राप्त करके साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते हैं।
दुसरा मंत्र-
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने। नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मस कामान् काम कामाय मह्यं। कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय। महाराजाय नम: ।
श्लोकाचा अर्थ – आम्हाला सर्वकाही (प्रसह्य) अनुकुल घडवून आणणाऱ्या राजाधिराज वैश्रवण कुबेराला आम्ही वंदन करतो. तो कामेश्वरकुबेर कामनार्थी अशा मला (माझ्या सर्व कामनांची )पूर्ति प्रदान करो.
इस मंत्र का भावार्थ- हमारे लिए सब कुछ अनुकुल करने वाले राजाधिराज वैश्रवण कुबेर को हम वंदन करते हैं। वो कामनेश्वर कुबेर मुझ कामनार्थी की सारी कामनाओं को पूरा करें।
तीसरा मंत्र-
ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं।
समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात्। पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळ इति।।
श्लोकाचा अर्थ – आमचे सर्व कल्याणकारी राज्य असावे. आमचे साम्राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुंनी परिपूर्ण असावे. येथे लोकराज्य असावे. आमचे राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित असावे अशा परमश्रेष्ठ महाराज्यावर आमची अधिसत्ता असावी.आमचे राज्य क्षितिजाच्या सीमेपर्यंत सुरक्षित असो. समुद्रापर्यंत पसरलेल्या पृथ्वीवर आमचे एकसंघ दीर्घायु राज्य असो. आमचे राज्य सृष्टीच्या अंतापर्यंत म्हणजे परार्ध वर्ष पर्यंत सुरक्षित राहो.
इस मंत्र का भावार्थ- हमारा राज्य सर्व कल्याणकारी राज्य हो। हमारा राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो। यहां लोकराज्य हो। हमारा राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित हो। ऐसे परमश्रेष्ठ महाराज्य पर हमारी अधिसत्ता हो। हमारा राज्य क्षितिज की सीमा तक सुरक्षित रहें। समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा दीर्घायु अखंड राज्य हो। हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित रहें।
चौथा मंत्र-
ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो। मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।।
श्लोकाचा अर्थ – या कारणास्तव अशा राज्याच्या आणि राज्याच्या किर्तीस्तवनासाठी हा श्लोक म्हटला आहे. अविक्षिताचा पुत्र मरुताच्या राज्यसभेचे सर्व सभासद असलेल्या मरुतगणांनी परिवेष्टित केलेले हे राज्य आम्हाला लाभो हीच कामना.
इस मंत्र का भावार्थ- राज्य के लिए और राज्य की कीर्ति गाने के लिए यह श्लोक गाया गया है। अविक्षित के पुत्र मरुती, जो राज्यसभा के सर्व सभासद है ऐसे मरुतगणों द्वारा परिवेष्टित किया गया यह राज्य हमें प्राप्त हो यहीं कामना।
Comments
Post a Comment