आरती श्री धन्वन्तरि जी की dhanvantari arti
आरती श्री धन्वन्तरि जी की जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा। जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ १ ॥ तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए। देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ २ ॥ आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया। सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ ३ ॥ भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी। आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ ४ ॥ तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे। असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ ५ ॥ हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा। वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ ६ ॥ धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे। रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा॥ ७ ॥ ॥ इति आरती श्री धन्वन्तरि सम्पूर्णम ॥